भाषा


 पहला भाषिक संप्रेषण, तो मां ने अपने नवजात शिशु के प्रति गहरे प्रेम से आंदोलित होकर ही किया होगा, इसलिए इसे मां की भाषा कहते हैं। प्रेम की अभिव्यक्ति के बहुत से तरीके हैं, और इसीलिए तरह-तरह की भाषाएं हैं, और भाषाओं में भी विविधता, और चूंकि सारी ही माताएं धरती मां के सदृष्य हैं इसलिए दुनिया की सारी भाषाओं में कोई एक समान चीज भी मौजूद है, उदाहरण के लिए , , और की ध्वनियां सारी भाषाओं, सारी बोलियों और यहां तक कि सारी आम जबानों में भी मौजूद हैं।



भाषाएं प्रेम से ही पैदा होती हैं, और प्रेम वह है जो हम दूसरों को देते हैं, वह नहीं जो हम दूसरों से ले लेते हैं, और अगर हम भाषाओं के विकास के इतिहास को देखें, तो हम देख पाएंगें, कि वहीं भाषा आगे बढ़ी, जिसने सबसे ज्यादा दिया, और वहीं काल के थपेड़ों को सहने में सक्षम पाली, प्राकृत, हिब्रू और लैटिन ने हांलाकि काफी कुछ दिया था, लेकिन चूंकि इनका योगदान पर्याप्त नहीं था, इसीलिए ये बाकी भाषाओें में डूब गईं, जबकि संस्कृत जिसने मनुष्यता को अपना सर्वोत्तम और हुयी | सब कुछ योगदान में दे दिया, वह आज भी लगभग सारी भारतीय भाषाओं एवं बहुत सी यूरोपियन भाषाओं को जन्म देने के बावजूद आजतक अपनी पूरी महिमा में जिंदा है। संस्कृत दुनिया की सारी भाषाओं में से सबसे ज्यादा शक्तिशाली, आत्मानुभूति से भरी और वैज्ञानिक भाषा है। चौवन ध्वनियों और  आठ सौ अस्सी धातु शब्दों के आधार पर यह सभी कुछ कह लेती है।



सारी खोजें प्रकृति की, अपने आपको प्रगट करने की इच्छा से जन्म लेती हैं, और प्रकृति यह नहीं चाहती कि कोई भी इन पर एकाधिकार या मालिकियत स्थापित कर ले क्योंकि प्रकृति ने हर चीज सबके लिए ही खोली होती है। भाषाओं के बारे में भी यही सच है। आगे आने वाले समय में भाषाओं का परस्पर समागम और उनमें से ज्यादा परिपूर्ण भाषाएं बनने की प्रक्रिया चलने वाली है। अंग्रेजी चूंकि यह सबको स्वीकृत और समाहित करने वाली भाषा है, अरबी चूंकि इसको दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी बोलती है, संस्कृत चूंकि यह सबसे ज्यादा शक्तिशाली है, और चीनी के पास भविष्य की भाषा को देने के लिए सबसे ज्यादा है।



1.       राज्यों की सीमा रेखाएं, अवरोध और भाषाओं के आधार पर विभेद विकास के मार्ग में बाधक हैं।

2.       चूंकि कोई भी भाषा किसी की बपौती नहीं है, इसलिए किसी भी भाषा को फैलने से रोकना किसी भी तरह उचित नहीं, अंत में स्थापित तो वही भाषा होती है जो सबसे ज्यादा देती हैं। हृदय से पैदा होने वाली भाषाएं जैसे संस्कृत, हिन्दी, और अरबी, उन भाषाओं से ज्यादा मीठी लगती हैं, जो दिमाग में से निकलती हैं, जैसे अंग्रेजी और फ्रैंच, इसके बारे में कोई कर भी क्या सकता है।

3.       भाषिक संहिता संस्कृत या इसकी कोई शाखा ही हो सकती है, इसके साथ हैं चीनी और इंग्लिश और जरूरी हो तो अरेबिक भी। शासन को उपर्युक्त चार भाषाओं में से दो को मुख्य और एक को वैकल्पिक भाषा बनाने पर भी विचार करना चाहिए।

4.       हमें भाषा के क्षेत्र में शोध और विकास शुरू करना चाहिए, ताकि लयबद्धता की ध्वनियां ढूढ़ी जा सकें, इनको प्रोत्साहित किया जा सके और फिर एक से दूसरी भाषा में स्वीकृत।

5.       वे भाषाएं जो गुरु के मुख और ऋषियों के मुंह से निकली हैं, उनका जीवन स्वभावतः लंबा होता है। हमें इस बात का गर्व हो सकता है कि संस्कृत को देव भाषा और इसके लिखित रूप को देवनागरी कहते हैं।

मां की भाषा या भविष्य में होने वाली माता (सास) की भाषा में मौजूद लयबद्धता को प्रोत्साहन जरूरी है, लेकिन फिर भी सबसे अच्छी भावनाएं तो केवल मौन में ही प्रवाहित होती हैं, हम कह सकते हैं कि प्रेम का मौन सर्वोत्तम भाषा है।


साभार मीता जीवन शैली लेखक - नरेंद्र 

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